Bewafa Shayari रुला देने वाली
Rula Dene WaliBewafa Shayari In Hindi
वक़्त से परे कही पड़ी है, हमारी इक मुलाक़ात बाकी।
खत में करें सब कैसे बयां, मिली तो बताएं हालात बाकी।।
अगर मगर में नज़र भी रह गई प्यासी।
लबी ने हरकत की तो, झुक गई पलकें दासी।।
कहकशांओं की गर्दिश और सितारों की जुम्बिश से आगे।
अंतराल में सम्पूर्णता लिए है, उसकी आंखो का झपकना ।।
तारे टूटते हैं ख्वाहिशें पूरी करने
या ख़्वाहिशों का बोझ तोड़ देता है उन्हे??
अपने हिस्से की धूप छांव तुम्हारे कदमी में रख दी।
इसे जियादा, और क्या वक़्त बिताता तुम्हारे संग ।।
गुमसुम झीलें खिलखिलाकर हस पड़ती है।
उसके कोमल पैरो की इक थापी पाकर ।।
जवाब न सही आँखो से कोई इशारा तो कर,
गर साथ मुनासिब नहीं, तो मेरा कोई और सहारा तो कर।।
मरने को मैं मर भी सकता था।
जिया ताकि तेरी कसमें सांस ले सकें।
उसकी तस्वीर दो घड़ी देख लूँ तो।
लगता है, अभी वो ज़हन पढ़ लेगा मेरा।।
ये आंखो में तुम्हारे पानी कैसा है।
वजह फिर कोई फांस हो गई है क्या।।
उस आफताब-ए-निगाह में हिद्दत कितनी हैं
मुझ माहताब अधूरे पे भी ज़ी पूरी रखता है।।
तुम जब चाहो, अंधेरा कर दो, जब चाहे कर दो सवेरे,
मेरे हिस्से के सूरज चंदा सितारे सब तुम्हारे है।।
पीपल पे बंधा मन्नत का धागा,
झील में फेंकी चाबी।
मैं नहीं ला सकता वापस,
तुम्हे आना ही होगा ।
रंग बदलते हैं चेहरे, रूह सदा ही बेरंग रहती है।
रंग जा तेरे रंग, तेरे बिन होली बेढ़ग रहती है।।
उछला रंग और उजली रंगत।
लम्स गालों पे और पूरी मन्नत।।
हाथ फैलाकर तुझे जब रब से मांगा
हुआ कोलाहल ऐसा, जैसे तुझे सब से मांगा।।
मौन है जुबां मन शोर करता है।
जिधर नाम तेरा, उस ओर चलता है।।
बिस्तर रहता है, ज्यो का त्यो ही।
सपने देखने वाला, हर भोर सम्हलता है।।
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वो जब भी देखता है मुझमें मीन-मेख देखता है।
फ़क़त इश्क़ है, कैसे वो मुझमें ऐब अनेक देखता है।।
एक ही बात के कितने मतलब निकलते है।
दिलासा देकर लोग दखाजे से हसकर निकलते है।।
एक अरसे की उदासी का ये सबब है।
मेरी आंख के आंस, मुझसे बचकर निकलते है।।
मेरे यारों की गिनती कभी बढ़ी ही नहीं।
यूं तो अजनबी कई मुझसे गले लगकर निकलते है।।
किस पे भरोसा करें, किसे बनाए अपना राज़दार।
हथेली पे जो जां जैसे, वहीं अकब निकलते है।।
साकी जाम से जियादा नशा उनकी आंखो में।
जी नज़र भर रहे, बन के अकबर निकलते है।।
यार-ए-अभी कितने ही अथक प्रयास कर लूं मैं।
जब बारी वफ़ा कि हो, परिणाम कमतर निकलते हैं।।
तुम अपने में ही साज़-ए-ख़ाना ।
तुम्हारी हर अदा में मौसीक़ी है ।।.
मैं कहां कह रहा हूँ,
शब्दो को तोड़-मरोड़कर
कुछ लिखी मेरे लिए,
कुछ कहो मुझ से,
तुम बस खुल के हंसा करी
मेरे साथ, मेरे लिए ग़ज़ल होगी।।
आबगीने नहीं दिखाते है हर चेहरा
तभी मन को दर्पण होता है ।
इश्क़ का पीछा भी न होगा तुमसे
तुम बहुत तेज जो ठहरे ॥
इश्क़ की समझ, शायद तुम्हे जियादा है।
तुम तलहटी देख आये, मैं अब भी डूब रहा हूँ।।
आपको आप में देखने से अच्छा है, खुद में देखना।
अगर धोखा मिलता भी है तो, खुद से मिलता है ।।
वी फासले नहीं फैसले थे
जी दूरी की वजह बने ।
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यादो से कीमती हैं
वो शख्स जो भुलाया नहीं जाता।
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