Famous Kumar Viahvas Shayari Geet New {2023}
Kumar Viahwas Shayari- Geet-Kavita 2023
kumar vishwas |
कोई दीवाना कहता हैकोई दीवाना कहता है कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
मैं तुझसे दूर कैसा हूँतू मुझसे दूर कैसी है
टो तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है
मुहब्बत एक अहसासों की पावन सी कहानी है
कभी कबिरा दीवाना या कभी मीरा दीवानी है
यहाँ सब लोग कहते हैं मेरी आँरवों में आँसू हैं
जो तू समझे तो मोती है जो ना समझे तो पानी है
बदलने को तो इन आँरवों के मंज़रकम नहीं बदले
तुम्हरी याद के मौसम,हमारेगम नहीं बदले
तुम अगले जन्म में हमसे मिलोगी तब तो मानोगी
जमाने औरसदी की इस बदल में हम नहीं बदले
हमें मालूम है दो दिल जुदाई सह नहीं सकते
मगर रस्मे-वफाये है,की ये भी कह नहीं सकते
जरा कुछ देर तुम उन साहिलों की चीरव सुन भर लो
जो लहरों में तो डूबे हैं, मगर संग बह नहीं सकते
समन्दर पीर का अन्दर है लेकिन रो नहीं सकता
ये आँसू प्यार का मोती है इसको रखो नहीं सकता
मेरी चाहत को दुल्हन तू बना लेना मगर सुन ले
जो मेरा हो नहीं पाया वो तेरा हो नहीं सकता
मिले हज़रत्म को, मुस्कान से सीना नहीं आया
अमरता चाहते थे, परगरल पीना नहीं आया
तुम्हारी और मेरी दास्तां, में फर्क इतना है
मुझे मरना नहीं आया, तुम्हें जीना नहीं आया
पनाहों में जो आया हो तो उस पे वार क्या करना
जो दिल हारा हुआ हो उस पे फिर अधिकार क्या करना
मुहब्बत का मज़ा तो डूबने की कशमकश में है
हो गरमालूम गहराई तो दरिया पार क्या करना
जहाँ हर दिन सिसकना है जहाँ हर रात गाना है
हमारी ज़िन्दगी भी इक तवायफ का घराना है
बहुत मजबूर होकरगीत रोटी के लिरवे मैंने
तुम्हारी याद का क्या है उसे तो रोज़ आना है
तुम्हारे पास हूँ लेकिन जो दूरी है, समझता हूँ
तुम्हारे बिन मेरी हस्ती अधूरी है, समझता हूँ
तुम्हें में भूल जाऊँगा ये मुमकिन है नहीं लेकिन
तुम्हीं को भूलना सबसे ज़रूरी है, समझता हूँ
मैं जब भी तेज़ चलता हूँनज़ारे छूट जाते हैं
कोई जब रूप गढ़ता हूँ तो साँचे टूट जाते हैं
मैं रोता हूँ तो आकर लोग कंघा थपथपाते हैं
मैं हँसता हूँ तो अक्सर लोग मुझसे रूठ जाते हैं
सदा तो धूप के हाथों में ही परचम नहीं होता
खुशी के घर में भी बोलो कभी क्या गम नहीं होता
फ़कत इक आदमी के वास्ते जग छोड़ने वालों
फकत उस आदमी सेरोज़माना कम नहीं होता
हमारे वास्ते कोई दुआ माँगे, असर तो हो
हकीकत में कहीं पर हो न हो आँखों में घर तो हो
तुम्हारे प्यार की बातें सुनाते हैं ज़माने को
तुम्हें खबरों में रखते हैं मगर तुमको खबर तो हो
बताऊँ क्या मुझे ऐसे सहारों ने सताया है
नदी तो कुछ नहीं बोली किनारों ने सताया है
सदा ही शूल मेरी राह से खुद हट गये लेकिन
मुझे तो हर घड़ी, हर पल बहारों ने सताया है
हर इक नदिया के होंठों पर समन्दर का तराना है
यहाँ फरहाद के आगे सदा कोई बहाना है
वही बातें पुरानी थीं, वही किस्सा पुराना है
तुम्हारे और मेरे बीच में फिर से ज़माना है
मेरा प्रतिमान आँसू में भिगोकरगढ़ लिया होता
अकिंचन पाँव तब आगे तुम्हारा बढ़ लिया होता
मेरी आँरवों में भी अंकित समर्पण की ऋचाएँ थीं
उन्हें कुछ अर्थ मिल जाता जो तुमने पढ़ लिया होता
कोई खामोश है इतना बहाने भूल आया हूँ
किसी की इक तरन्नुम में तराने भूल आया हूँ
मेरी अब राह मत तकना कभी ऐ आसमाँ वालों
मैं इक चिड़िया की आँरवों में उड़ानें भूल आया हूँ
हमें दो पल सुरूरे-इश्क में मदहोश रहने दो
जेन की सीढ़ियाँ उतरो, अँमा ये जोश रहने दो
तुम्हीं कहते थे "ये मसले, नज़र सुलझी तो सुलझेंगे"
नज़र की बात है तो फिरये लब खामोश रहने दो
में उसका हूँ वो इस अहसास से इनकार करता है
भरी महफिल में वो रुसवा मुझे हर बार करता है
यकी है सारी दुनिया को खफा है मुझसे वो लेकिन
मुझे मालूम है फिर भी मुझी से प्यार करता है
अभी चलता हूँ, रस्ते को मैं मंज़िल मान लूँकैसे
मसीहा दिल को अपनी ज़िद का कातिल मान लूँकैसे
तुम्हारी याद के आदिम-अन्धेरे मुझको घेरे हैं
तुम्हारे बिन जो बीते दिन उन्हें दिन मान लूँ कैसे
भ्रमर कोई कुमुदिनी पर मचल बैठा तो हँगामा
हमारे दिल में कोई ख्वाब पल बैठा तो हँगामा
अभी तक डूब कर सुनते थे सब किस्सा मुहब्बत का
मैं किस्से को हकीकत में बदल बैठा तो हँगामा
कभी कोई जो खुलकर हँस लिया दो पल तो हँगामा
कोई ख्वाबों में आकर बस लिया दो पल तो हँगामा
मैं उससे दूर था तो शोर था साज़िश है, साज़िश है
उसे बाँहों में खुलकर कस लिया दो पल तो हँगामा
जब आता है जीवन में खयालातों का हंगामा
ये जज़्बातों, मुलाकातों हसीं रातों का हंगामा
जवानी के कयामत दौर में यह सोचते हैं सब
ये हंगामे की रातें हैं, या है रातों का हंगामा
कलम को खून में खुद के डुबोता हूँ तो हँगामा
गिरेबां अपना आँसू में भिगोता हूँ तो हँगामा
नहीं मुझ पर भी जो खुद की ख़बर वो है ज़माने पर
मैं हँसता हूँ तो हँगामा, मैं रोता हूँ तो हँगामा
इबारत से गुनाहों तक की मंज़िल में है हँगामा
ज़रा-सी पी के आये बस तो महफ़िल में है हँगामा
कभी बचपन, जवानी और बुढ़ापे में है हँगामा
जेहन में है कभी तो फिर कभी दिल में है हँगामा
हुए पैदा तो धरती पर हुआ आबाद हँगामा
जवानी को हमारी करगया बर्बाद हँगामा
हमारे भाल पर तकदीर ने ये लिरव दिया जैसे
हमारे सामने है और हमारे बाद हँगामा
ये उर्दू बज़्म है और मैं तो हिन्दी माँ का जाया हूँ
ज़बाने मुल्क की बहनें हैं ये पैगाम लाया हूँ
मुझे दुगनी मुहब्बत से सुनो उर्दू ज़बाँ वालों
मैं अपनी माँ का बेटा हूँ, मैं घर मौसी के आया हूँ
स्वयं से दूर हो तुम भी, स्वयं से दूर हैं हम भी
बहुत मशहूर हो तुम भी, बहुत मशहूर हैं हम भी
बड़े मग़रूर हो तुम भी, बड़े मग़रूर हैं हम भी
अतः मजबूर हो तुम भी, अतः मजबूर हैं हम भी
हरेक टूटन, उदासी, ऊब आवारा ही होती है
इसी आवारगी में प्यार की शुरुआत होती है
मेरे हँसने को उसने भी गुनाहों में गिना जिसके
हरेक आँसू को मैंने यूं संभाला जैसे मोती है
कहीं पर जग लिये तुम बिन, कहीं पर सो लिये तुम बिन
भरी महफ़िल में भी अक्सर, अकेले हो लिये तुम बिन
ये पिछले चन्द बरसों की, कमाई साथ है अपने
कभी तो हँस लिये तुम बिन, कभी फिर रो लिये तुम बिन
हमें दिल में बसाकर अपने घर जाएँ तो अच्छा हो
हमारी बात सुन लें और ठहर जाएँ तो अच्छा हो
ये सारी शाम जब नज़रों ही नज़रों में बिता दी है
तो कुछ पल और आँरवों में गुज़र जाएँ तो अच्छा हा
नज़र में शोरिवयाँ लब पर मुहब्बत का तराना है
मेरी उम्मीद की जद में अभी सारा ज़माना है
कई जीते हैं दिल के देश पर मालूम है मुझको
सिकन्दर हूँ मुझे इक रोज़ वाली हाथ जाना है
हमारे शेर सुनकर भी जो वो वामोश इतना है
खुदा जाने गुरूरे-हुस्न में मदहोश कितना है
किसी प्याले ने पूछा है सुराही से सबब मय का
जो खुद बेहोश है वो क्या बताए होश कितना है
बस्ती-बस्ती घोर उदासी, पर्वत-पर्वत खालीपन
मन हीरा बेमोल लुट गया, घिस-घिस रीता तन चन्दन
इस धरती से उस अम्बर तक, दो ही चीज़ ग़ज़ब की हैं
एक तो तेरा भोलापन है, एक मेरा दीवानापन
इस दीवानेपन की लौ में, धरती-अम्बर, छूट गया
आँरवों में जो लहरा था वो, आँचल पल भर, छूट गया
टूट गयी बाँसुरी और हम बने द्वारिकाधीश मगर
अपना गोकुल बिसर गया और गाँव-गली, घर छूट गया
सब अपने दिल के राजा हैं सबकी कोई रानी है
कभी प्रकाशित हो न हो पर सबकी एक कहानी है
बहुत सरल है पता लगाना किसने कितना दर्द सहा
जिसकी जितनी आँरव हँसे हैं उतनी पीर पुरानी है
जिसकी धुन पर दुनिया नाचे, दिल ऐसा इकतारा है
जो हमको भी प्यारा है और, जो तुमको भी प्यारा है
झूम रही है सारी दुनिया, जबकि हमारे गीतों पर
तब कहती हो प्यार हुआ है, क्या अहसान तुम्हारा है
धरती बनना बहुत सरल है कठिन है बादल हो जाना
संजीदा होने में क्या है मुश्किल पागल हो जाना
रंगखेलते हैं सब लेकिन कितने लोग हैं ऐसे जो
सीख गटो हे फागुन की मस्ती में फागुन हो जाना
सखियों सँग रंगने की धमकी सुनकर क्या डर जाऊँगा
तेरी गली में क्या होगा ये मालूम है पर आऊँगा
भीग रही है काया सारी रखजुराहो की मूरत-सी
इस दर्शन का और प्रदर्शन मत करना मर जाऊँगा
किस्मत सपन संवार रही है, सूरज पलकेंचूम रहा है
यूँ तो जिसकी आहट भर से, धरती अम्बर झूम रहा है
नाच रहे हैं जंगल, पर्वत, मोर, चकोर सभी लेकिन
उस बादल की पीड़ा समझो, जो बिन बरसे घूम रहा
हमने दुःरव के महा-सिन्धु से सुरव का मोती बीना है
और उदासी के पंजो से, हँसने का सुरव छीना है
मान और सम्मान हमें ये याद दिलाते हैं पल-पल
भीतर-भीतर मरना है पर बाहर-बाहरजीना है
इस उड़ान पर अब शर्मिंदा, तू भी है और में भी हूँ
आसमान से गिरा परिदा, तू भी है और मैं भी हूँ
छूट गयी रस्ते में जीने-मरने की सारी कसमें
अपने अपने हाल में जिंदा, तू भी है और मै भी हूँ
खुशहाली में इक बदहाली, तू भी है और मैं भी हूँ
हर निगाह पर एक सवाली, तू भी है और मैं भी हूँ
दुनियां कुछ भी अर्थ लगाये, हम दोनों को मालूम है
भरे-भरे पर रवाली-रवाली, तू भी है और मैं भी हूँ
तुम अमर राग-माला बनो तो सही
एक पावन शिवाला बनो तो सही
लोग पढ़ लेंगें तुमसे सबक प्यार का
प्रीति की पाठशाला बनो तो सही
ताल को ताल की सँकृति तो मिले
रुप को भाव की अनुकृति तो मिले
में भी सपनों में आने लगूं आपके
पर मुझे आपकी स्वीकृति तो मिले
दीप ऐसे बुझे फिर जले ही नहीं
जम इतने मिले फिर सिले ही नहीं
टार्य किस्मत पे रोने से क्या फायदा
सोच लेना कि हम तुम मिले ही नहीं
लाख अंकुश सहे इस मृदुल गात पर
बन्दिशें कब निभी मेरे जज़्बात पर
आपने पर मुझे बेवफा जब कहा
आँख नम हो गयीं आपकी बात पर
झूठी तसल्लियों से कुछ भी भला न होगा
था प्यार ही अधूरा खुलकर पता न होगा
अब भी समय है उसको रो-रो के रोक लो तुम
वो दूर जाने वाला घर से चला न होगा
वही कच्चे आमों के दिन गाँव में हैं
वही नर्म छाँवों के दिन गाँव में हैं
मगर ये शहर की अजब उलझनें हैं
न तुम गाँव में हो न हम गाँव में हैं
मोह को त्यागे हुए पँछी बहुत खुश थे
रात भर जागे हुए पँठी बहुत खुश थे
यूँ किसी कोने में कोई डर भी था लेकिन
नीड़ से भागे हुए पँछी बहुत खुश थे
दर्द का साज दे रहा हूँ तुम्हें
दिल के सब राज़ दे रहा हूँ तुम्हें
ये ग़ज़ल, गीत सब बहाने हैंमैं तो आवाज़ दे रहा हूँ तुम्हें....